दुर्जनों के लिए धधकती क्रोधाग्नि एवं सज्जनों के लिए छलछलाते प्रेम के संगम हैं आवेशावतार भगवान परशुराम

भगवान परशुराम प्राकट्य दिवस पर विशेष आलेख



पं. राम नारायण शर्मा ललितपुर 

ललितपुर [जनकल्याण मेल] भगवान परशुराम के प्राकट्य दिवस पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो.भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि वही हृदय शुद्ध होता है जिसमें प्रबल आवेश हो तथा वही गुण तभी चमचमाते हैं जब हम अदम्य उत्साह के साथ उन पर निरन्तर धार देते रहते हैं। पुराणों में कहा गया है कि परशुरामजी के पिता महर्षि जमदग्नि बड़े शान्त स्वभाव के थे। शिकार के दौरान पराक्रमी योद्धा सहस्रार्जुन उनके आश्रम में जब प्रवेश करता है तो अतिथि के नाते जमदग्नि उसका स्वागत करते हैं। परन्तु जाते समय वह उनके आश्रम की नन्दनी गाय को लोभ-लालच के वशीभूत होकर जबरन ले जाता है। परशुराम जी के आश्रम लौटने पर जब उन्हें पिता द्वारा घटना की जानकारी होती है तो वे आगबबूला हो उठते हैं और उसकी घिनौनी करतूत के लिए ऐसा सबक सिखाते है कि उसकी सहस्र भुजाओं को वे काट डालते है जिससे उसकी हत्या हो जाती है। श्रीमदभागवत महापुराण में कहा गया है कि पिता जमदग्नि कहते हैं राम -राम महाबाहोभवान पापमकार षीत हाय-हाय परशुराम तुमने बड़ा पाप कर दिया। वे अपने पुत्र को सदैव यही शिक्षा देते रहते थे कि क्षमा ही वीरों का आभूषण है। उनकी इस सीख का जादू जैसा असर कालांतर में तुलसीकृत रामायण की इन पंक्तियों में दिखाई देता है, जिसमें वे भगवान राम और लक्ष्मणजी से कहते हैं "अनुचित कहेऊ बहुत अग्याता, छमहुं, छमा मन्दिर दोऊ भ्राता" वस्तुत: भगवान राम और भगवान परशुराम दोनों शिवभक्ति अर्थात सर्व मंगलकारी शिवत्व के एक ही पथ के राही हैं। आवेशावतार परशुरामजी इतने उदार हृदय हैं कि अपनी समस्त सम्पत्ति निर्धनों में बांट देते हैं। इतना ही नहीं भूमिहीन कृषक, श्रमिकों को खेती योग्य भूमि उपलब्ध कराने के लिए गोकर्ण में खड़े होकर अपना परशु (फरसा /फावड़ा) कुमारी अन्तरीप (केरल) के समुद्र में इतनी जोर से फेकतें हैं कि जहाँ वह गिरता है वहाँ तक की भूमि को वरुणदेव जल से मुक्त करके वहाँ के धरतीपुत्रों को खेती-किसानी के लिए उपलब्ध करा देते हैं। यही क्षेत्र आज भार्गव प्रदेश अर्थात केरल कहलाता है। मलयालम के महान विद्वान भक्त कवि वल्लवतोल ने अपने गीतों में परशुराम जी वन्दना करते हुए कहा है कि भूमि उपलब्ध होने से किसानों की रीढ़ की हड्डी श्रमिकों के श्रमफल को चुराने का जो अभी तक सोपान बनी हुई थी वह अब उनके तन कर खड़े होने का आधार बन गई है। अत: सतत चैतन्य के उदगाता अपराजेय पौरुष के देवों के देव भगवान परशुराम को शत शत नमन।