ललितपुर में चल रही तीसरे दिन की श्रीरामकथा सुनकर भावविभोर हुए श्रोता

 


ललितपुर [जनकल्याण मेल] चौकाबाग स्थित कथा पंडाल में तृतीय दिवस संत मुरारी बापू ने कहा कि रामचरित मानस मान सरोवर है जो घर-घर में, घट-घट में विद्यमान है। रामचरित मानस का रस चार मुखों से प्रकट हुआ है। इनमें खग के मुख से, भगवान भूत भावन शिव के मुख से, याज्ञवलिक ऋषि के मुख से, पूज्य तुलसी के मुख से प्रकट यह रस गिरा।

उन्होंने कहा कि श्री रामचरित मानस तो रस का सरोवर है। मानस में छह प्रकार की शरणागति का दिग्दर्शन कराया गया है। उर्ध्व गति प्रदान करने की क्षमता प्रभु राम में ही है। राम परमात्मा है, परम तत्व है। भगवान शिव ने अधिकार छोडते हुए राम के परमात्मा होने की घोषणा की। राम, कृष्ण परमात्मा हम सभी जीवात्मा है। भैया भरत प्रेम का अवतार हैं। सत्य का अवसर भैया शत्रुधन है। करूणा का अवतार मेरी मैया जानकी जू हैं। अनुराग का विग्रह प्रभु हनुमान जी महाराज हैं।अनुराग के सभी तत्व श्री हनुमान जी में देखने को मिलते हैं। प्रथमहिं अति अनुराग भवानी, रामचरित सर कहेसि बखानी, भूत भावन भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कांगभुसिंडि जी महाराज ने अति अनुराग भाव से प्रभु श्रीराम जी के चरित के संचित रस को पक्षीराज गरूड के सम्मुख रखा।

श्री रामचरित मानस का बालकांड प्रथम सोपान गति का कांड है। बाल्यावस्था में गति सहज होती है। गति स्वतः होती है। गोस्वामी जी ने प्रभु राम के क्रियाकलापों का जो वर्णन किया है, उससे स्पष्ट है कि ठाकुर की हर गति संसार के लिए मंगलकारक है। बाल्यावस्था अनुराग प्रधान होता है। अनुराग व प्रेम विलग है। अनुराग में ममता सदैव समाहित रहती है। ऐसा अनुराग जिसमें दस प्रकार की ममता यथा रूप रहे, वास्तविक अनुराग है। प्रेम में सब प्रकार की ममता एक रस हो जाए ऐसा रसायन प्रेम है। सुगति एवं दुर्गति हमारे कर्माधीन है। इस मौके पर सतुआ बाबा, गंगादास महाराज, रामलखनदास, मुख्य यजमान हर्षा गोहिल, अजय, संजय गोहिल मौजूद रहे।

संत मुरारी बापू ने कहा कि साधु की व्याख्या करते हुए कहा कि साधु सहनशील होना चाहिए। जो कहे वह बोले मतलब जो बोले उसे निभाए। जो बहुत गहन करें सो साधु, सत्य को ग्रहण करने वाला साधु होना चाहिए। सब पर रहम करने वाला साधु होना चाहिए। साधु कभी वहम न करे, अविश्वास न हो। दूसरे के प्रति बैर जागृत न हो। विभीषण का चरित्र सुनकर बैर मिट जाएगा और विश्वास होने लगेगा। शंका होने पर उल्टा दिखने लगता है। ईर्ष्या, द्वेष व निंदा को जलाकर दहन कर दें, कभी किसी से विद्वेष न रखे और इसे अंकुरित भी न होने दे। ऐसा साधु मिल जाए तो मानस आसान हो जाएगी।

संत मुरारी बापू ने बताया कि विष्णुकांत देवानंद परिवार के दादा थे, जिन्होंने संयास लिया। वह ऋषिकेश के षष्ठम महामंडलेश्वर थे। उन्होंने एक पोस्टकार्ड लिखा था, इसमें कहा कि रामचरित मानस तो है, साथ में भगवत गीता को भी रखे। यह समझ में आए न आए बच्चों को जरूर पढाइये। यदि पढ न पाए तो भगवत गीता का दर्शन जरूर करा दें। भगवत गीता किसी एक धर्म न होकर भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान है। भगवत गीता पढो तो अद्भुत है, यह हमारा पासपोर्ट और हमारी पहचान है। बुंदेलखंड के युवा अपने झोले में रामचरित मानस व भगवत गीता रखें।