जिये तो जियें कैसे, गुरु बिना आपके
प्रदीप खरे
टीकमगढ़ [जनकल्याण मेल] जियें तो जियें कैसे बिना आपके...यह भाव यहां गुरूदेव भगवान को विदा करते समय प्रत्येक व्यक्ति के मन में थे। गुरूदेव धीरेन्द्र शास्त्री को अपने से जुदा करने का मन किसी का भी नहीं कर रहा था। यहां सात दिनों तक चली श्रीमद् भागवत कथा के दौरान जो भक्ति रस की गंगा अविरल प्रवाहित हुई। इसके बाद गुरूदेव धीरेन्द्र शास्त्री की शरण में आये लोगों को टीकमगढ़ अयोध्या और मथुरा धाम लगने लगा। यहां आये लोगों में गुरू दर्शन की लालसा इस कदर बनी रही कि वह सारी रात उनके दर्शनों की प्रतिक्षा में खड़े रहते। यजमान राजेन्द्र तिवारी और उनका पूरा परिवार अतिथियों के सत्कार में जुटा रहा। गुरूदेव और उनकी भक्त मंडली यहां सात दिन तक रही, जिस का प्रभाव यह रहा कि सभी शुद्ध मन से सेवा और भक्ति में लीन रहे। कमेटी के सभी सदस्य अपना पूर्ण समय सेवा में लगाये रहे। श्री राजेन्द्र तिवारी, राहुल तिवारी, रिक्की तिवारी सहित उनके परिजनों एवं अन्य सदस्यों ने भारी मन से गुरूदेव को विदा किया। उनसे जुदा कोई भी नहीं होना चाहता। विदाई के यह पल लोग सहन नहीं कर पा रहे थे और बार-बार आंखों से आंसू छलक रहे थे। बिना गुरूदेव के जैसे सब कुछ लुट गया। धीरज इस बात का जरूर है कि जल्दी ही वह यहां फिर आयेंगे। श्री तिवारी जी ने भी अगले साल एक बार फिर श्रीराम कथा कराने और महाराज श्री को टीकमगढ़ आमंत्रित करने का जिले की जनता को आश्वासन दिया। गुरूदेव ने भी जिले के लोगों को अपना आशीर्वाद दिया और कहा कि यहां की भक्त मंडली ने जो प्रेम और सहयोग कथा में किया है, भगवान उनकी सदैव रक्षा करें। उन्होंने कहा कि इस भव्य आयोजन और यहां के लोगों को वह कभी नहीं भुला पायेंगे। बागेश्वर धाम और सन्यासी बाबा के जयकारों से सारा नगर गूंजता रहा। विदाई के दौरान भी सुबह सूर्योदय के पहले ही यहां सबेरा हो गया। गुरूदेव के दर्शनों और उन्हें विदा करने के लिये बढ़ी संख्या में लोग जमा हो गये। कथा के यजमान राजेन्द्र तिवारी ने इस भव्य आयोजन में पधारे सभी श्रद्धालुओं जिले के बाहर एवं जिले के सभी लोगों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इतना विशाल आयोजन बिना जनता और साथियों के सहयोग के करा पाना संभव नहीं था। उनके पास आभार व्यक्त करने के लिये कोई शब्द नहीं है। गुरूदेव की चरण रज पाने और आशीर्वाद लेने के लिये लोगों की जिस कदर भीड़ उमड़ रही थी, उसे देखकर लगता था कि व्यवस्था कैसे सम्हलेगी, लेकिन गुरूदेव की कृपा और बालाजी सरकार की महिमा रही कि सब कार्य अच्छी तरह से संपन्न हो गया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यदि किसी को भी उनके कारण जाने और अनजाने में किसी प्रकार की तकलीफ हुई हो या परेशानी हुई हो, तो वह अपना जानकर उन्हें क्षमा करें और अपना स्नेह बनाये रखें।