अहिंसा सौहार्द और जैन विरासत 3 उद्देश्य मूल्यों संस्कृति और संस्कार के मानवीय पक्ष को प्रतिष्ठित करना - प्रो. आशा शुक्ला

जैन संस्कृति एवं संस्कार त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन



इंदौर [जनकल्याण मेल] सभी धर्मों की श्रेष्ठ बातों को प्रतिष्ठित करना ही उच्च शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।  डा. बी आर अंबेडकर के विचारों में भी समावेशी तत्व है। वे समग्र समाज को ध्यान में रखकर विचार करते थे। आज के समय में नई पीढ़ी को संस्कारित करना आज के समाज की आवश्यकता है। संस्कार से ही संस्कृति बनती है। अहिंसा, सौहार्द और जैन विरासत शोध पीठ डा. बी आर अंबेडकर विश्वविद्यालय का उद्देश्य से मूल्यों, संस्कार और संस्कृति के मानवीय पक्षों को प्रतिष्ठित करना है। ये विचार ब्राउस की कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त किए। जैन संस्कृति एवं संस्कार त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन डॉक्टर बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू और श्रमण संस्कृति विद्यावर्धन ट्रस्ट, इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में श्री दिगंबर जैन अतिशय तीर्थ गोमटगिरी इंदौर में 24 से 26 दिसंबर को किया गया। इस राष्ट्रीय गोष्ठी में जैन पुराणों में संस्कार, जैन जीवन शैली की उपयोगिता, संस्कार कैसे लाएं, 16 संस्कार, भारती परंपरा में संस्कार-संस्कृति संस्कार महत्व, पंचकल्याणक का धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक महत्व, धार्मिक अनुष्ठान प्रतिष्ठा विधि-विधान में विसंगतियां आदि मुद्दों पर 23 शोध पत्रों का वाचन हुआ। जिसकी सारांश पुस्तिका का विमोचन भी उद्घाटन समारोह में किया गया।



समापन सत्र में सारस्वत अतिथि प्रोफेसर राजीव सांगल वाराणसी आईआईटी के पूर्व निदेशक ने प्राकृत भाषा के ग्रंथों के सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा की जैन समाज और युवाओं को आगे आकर इस कार्य को हाथ में लेना चाहिए। वे भारत सरकार की राष्ट्रीय अनुवाद मिशन की समिति के प्रमुख हैं। उन्होंने मूल्य शिक्षा संस्कारों के महत्व और उसे शिक्षा से प्रतिष्ठित करने के अपने प्रयोगों से भी अवगत कराया। पीठ के आचार्य डॉक्टर अनुपम जैन ने कहा कि विश्व की सभी प्रमुख समस्याओं का समाधान जैन जीवन पद्धति में निहित है, जो जैन धर्मावलंबियों को संस्कार के रूप में प्राप्त होती है। मुख्य अतिथि श्री अशोक बड़जात्या ने कहा कि जैन संस्कृति का संरक्षण मानवता के लिए बहुत उपयोगी है। समापन सत्र में हेमचंद्र झंझरी, पंडित रतनलाल जैन शास्त्री पंडित रमेश चंद बांझल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए ब्राउस के अधिष्ठाता प्रोफेसर दीपक कुमार वर्मा ने कहा कि धर्म के बिना विज्ञान निरर्थक है। उन्होंने कहा कि यह पहला अवसर है कि विश्वविद्यालय अपने परिसर से निकलकर तीर्थ पर आया है। इस सत्र में श्री हंसमुख गांधी, पंडित रमेश चंद्र बांझल, प्रोफेसर सुरेंद्र पाठक ने अपने विचार रखे। प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर सुरेंद्र पाठक ने संस्कारों की व्याख्या करते हुए स्थिर निश्चित जीवन शैली की आवश्यकता को रेखांकित किया और उन्होंने कहा कि संस्कार पूर्वक जीने का यही प्रमाण है। इसी सत्र में प्रोफेसर संजीव सराफ बनारस विश्वविद्यालय ने संस्कृति संस्कार संरक्षण में पुस्तकालय की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। पंडित विनोद कुमार रजवास ने पौराणिक संदर्भों के साथ 16 संस्कारों की चर्चा की और कहा कि मानव जीवन के लिए ये बहुत उपयोगी हैं। दूसरे दिन क्रमशः 4 सत्रों में पंडित शीतल जैन ललितपुर, सुरेश मिश्रा इंदौर, डॉक्टर अल्पना मोदी ग्वालियर, सूरजमल बोबरा, सचिन जैन रतलाम, डा. संजीव गोधा जयपुर, प्रोफेसर पीएन मिश्रा पूर्व निदेशक प्रबंधन अध्ययन संस्थान देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, अल्पना जैन, श्रीमती रेखा पतंगया इंदौर, समझा जैन, सुरेश जैन शिवपुरी, डा. सुरेंद्र पाठक महू आदि ने शोध पत्रों का वाचन किया। समापन दिवस का प्रातः कालीन सत्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा विधि को समर्पित था, जिसमें वरिष्ठ आचार्य पंडित जयकुमार जैन निशांत टीकमगढ़ की अध्यक्षता एवं मुख्य अतिथि पंडित रमेश चंद्र बांझल थे। इसी सत्र में डॉ शोभा जैन, पंडित विनोद कुमार जैन, डा. भारत शास्त्री ने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा की क्रिया विधि के सुझाव दिए। अंतिम सत्र में ओनश्री भानु कुमार जैन की अध्यक्षता में डा. संगीता मेहता, श्रीमती उषा पाटनी ने छूटते संस्कार व टूटते परिवार पर शोध पत्र प्रस्तुत किया।



समापन सत्र में डॉ अनुपम जैन के द्वारा लिखी लिखित "मालवांचल की पांडुलिपि संपदा" पुस्तक का विमोचन प्रोफेसर राजीव संगल और श्री अशोक बड़जात्या के द्वारा किया गया।

प्रतिभागियों ने कार्यक्रम को अत्यंत सफल निरूपित करते हुए विश्वविद्यालय की अहिंसा, सौहार्द एवं जैन विरासत शोध पीठ को श्रमण संस्कृति विद्या वर्धन ट्रस्ट सदृश्य संस्थाओं के सहयोग से सतत ऐसे कार्यक्रमों को आयोजित किया जाना चाहिए, जिससे जैन विरासत का संरक्षण हो सके। ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री भानु कुमार जैन, सचिव इंजीनियर कैलाश वैद, श्री रवि गंगवाल ने विश्वविद्यालय सहित सभी का आभार व्यक्त किया और भविष्य में ऐसे आयोजनों को सतत सहयोग का विश्वास दिलाया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में जैन समाज के प्रतिष्ठित श्री आरके जैन रानेका,  श्रीमती सुमन जैन, श्री कमल सेठी, श्री राजेंद्र गंगवाल और अंबेडकर विश्वविद्यालय से डा. नवरत्न बोथरा,  डा. बिंदिया तातेड, श्रीमती मनीषा, श्री मनीष त्रिवेदी सहित अनेक अध्ययन-शोधकर्ता उपस्थित है।