*गम्म खाऔ, तेल न लगाऔ*

                           व्यंग्य.... 

प्रदीप खरे,मंजुल [जनकल्याण मेल] 

भुनसारे सें तेल कौ नाऔ लयें सें अशुभ मानौ जात। कत कै तेल कौ नाऔ नयीं लऔ जात। रमुआ नें पंचन में कोढ़े पै बैठकें तेल पै चर्चा शुरू कर दयी। फिर का कनें, तेल का, भारत पाकिस्तान कौ युद्ध हो गऔ। सुनकें बगल में बैठो भोला बोलो, भैया सो अपनें तै तेल कौ नाऔ अब कोऊ बैसयी नयीं लेत। अच्छी रयी कै मांगौ हो गऔ। पनबेसरी न तौ एतवार देखत हती, न बुद्दवार, जब देखौ सो, उठायी जीब तरुआ सें मार दयी, भुनसारे सें कत कै तेल ले ताऔ। सांसी कयी..हमें तौ लगत कै ऐयी तेल के असगुन सें घर कौ खानागान नयीं हो पा रऔ। ससुर सरकारी पैइसा तक जौन आऊत सो अधिकारी और नेता मिलकैं खा जात और हमायी पासबुक तौ बैंक बारन तायीं हेरत रत। भैया हम तौ कत कै गरीबन की दशा जबयी सुधरने जब तेल बनबौ बंद होनें। न भ्रष्टाचार बंद होनें और न जौ तेल। भोला तै सोई का लगो, तेल लगाबे बारे बढ़तयी जा रये। बिना तेल लगाबे बारन की अब पूंछ कितै है। मुखिया नें मूंछन पै ताव दऔ और बोले कै मुच्छ न तौ कुच्छ न, पुच्छ न तौ कुच्छ न। पूंछ तौ भैया जरूरी है। तेल लगाये सें अपनौ का बिगारबे। रमुआ बोलो कै मुखिया जू लगत कै अपन सोई लगत कै तेल लगा लगा कैं चमक गयै। मुखिया हंसन लगे। दुखद रग पै हाथ धर दऔ । अबयी कछु दिना पैलां मंत्री जी के दौरा में मुखिया जी खौं तेल जांदा लगाउनें आऔ। आदर सत्कार कछु जांदा करो, तेल की धार सोई तेज बै गयी, मिलबांट कै तेल पीबे की जुगाड़ हो गई। मुखिया ने बतायी कै नेता जी बंदा बनाबे की कै गयै। रमुआ बोलो..काय मुखिया जू सो अपने इतै नदिया कितै है। मुखिया बोले तै का जानें, तेल देख और तेल की धार देख। अपने मंत्री जी नें कै दयी सो कै दयी। उनकी बात तौ पथरा की लकीर है। तै सौ टका सांसी मानिए। बे पैलां नदिया बनबायें और फिर ऊपै बंदा बनायें। बे सोई अपनें ऊपर बारे खौं तेल लगायें, और फिर इतै सोई तेल की धार बुआयें। भैया ई रमुआ ससुरा नें देखौ तौ तेल की चर्चा करकें कितेक असगुन करो, कै घर कौ तौ छोड़ौ, देश कौ बंटाधार भऔ। पैलां पेड़ कांटें, फिर उतयी पेड़ लगात। नदियां पूरत और तला बनात। अब तौ बिना नदी के मुखिया जू बंदा बनवा रयै। भोला अब तैयीं बता, इनैं को हरा रऔ। तेल के भाव सोई सरकार खूबयी बढ़ा रयी, तौयी ससुर जे लगाबे बारे नयीं मान रयै। इतै आदमियन खौ लगाबे नइयां, घरन में खाबे नइयां। तेल लगा लगाकें इनन तौ तेल की धार दिखा दयी। भैया कजन की दार तेल कौ भाव तनक और बढ़ा दयै, तौ फिर कोउ नाव नयीं लै। न तेल कौ नाम लें और न फिर जौ असगुन हुइयै। भैया तेल कौ खेल सोई निरालौ है, देखौ तौ कैउअन खौ बिना आग के उबालौ है। हमायी मानौ तौ खुद चाय जितेक खाऔ, अकेलें अब तेल औरन खौं नयीं लगाऔ। तेल लगातन में बगराऔ, तौ फिर खुदयी खौं गिराऔ। भैया तेल सें अब तौ गम्मयीं खाऔ।