अशोकनगर:(जनकल्याण मेल)।छात्र संगठन एआईडीएसओ के राज्य सचिव सचिन जैन ने एक बयान जारी कर कहा कि कोरोना की मौजूदा स्थिति में उच्च शिक्षा मंत्रालय का परीक्षा कराने अथवा ना कराने का निर्णय एकतरफा व गैर वैज्ञानिक है। पिछले साल भी छात्रों को जनरल प्रमोशन या ओपन बुक एग्जाम के तहत प्रमोट किया गया था। उस समय भी कोरोना की इसी विपरीत स्थिति का सामना छात्र कर रहे थे। पूरा एकेडमिक कैलेंडर बिगड़ चुका था जो अभी तक सुधर नहीं पाया है।उस समय भी कुछ कक्षाओं की परीक्षाएं हुईं और कुछ कक्षाओं की रह गईं थीं ।आज भी शासन-प्रशासन कोरोना को सामने रखकर छात्रों की पढ़ाई के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा कर परीक्षाओं की इतिश्री कर रहा है। औपचारिकता भी कुछ नियम कायदे कानून से की जाती है, लेकिन ओपन बुक एग्जाम या कुछ कक्षाओं के एग्जाम कराना और बांकी कक्षाओं के एग्जाम न कराना एक तरह से असंगत और अतार्किक है। मानो कोरोना का खतरा और उससे होने वाला संक्रमण कुछ कक्षाओं की परीक्षाएं कराने से तो होगा और कुछ की परीक्षा कराएंगें तब भी उन छात्रों को संक्रमण नही होगा। हम सभी देख रहे हैं चुनावों में जो भीड़ जुटाई जा रही है उसके लिए कोई गाइड लाइन नहीं है।लेकिन आम जनता के लिए, खास तौर पर विश्वविद्यालय महाविद्यालय के लिए कोरोना की गाइड लाइन थोपी जा रही है। इस समय भी अगर इस समस्या के लिए सही जनवादी तरीका अपनाया जाता तो समझ में आ जाता कि छात्रों शिक्षकों और मेडिकल एक्सपर्ट की राय के साथ साथ उचित सावधानी बरतते हुए या तो सभी के एग्जाम्स कराने के लिए तरीके निकाले जा सकते थे या फिर एग्जाम नही हो पाएंगे तो क्या सही और समान मूल्यांकन पद्धति होगी उसके बारे में सोचा जाता। लेकिन एक तरफ सरकार एग्जाम (फाइनल ईयर) करा रही है और दूसरी तरफ(फर्स्ट ईयर व सेकंड ईयर की) ओपन बुक एग्जाम करा कर परीक्षाओं का मजाक भी बना रही है। यहां समय लेकर अगर सभी के एग्जाम कराए जा सकते थे तो सबसे अच्छा होता। लेकिन अब छात्रों को भी सरकार के इस निर्णय ने दो पक्षों में बांट दिया है एक जनरल प्रमोशन जिसमें ओपन बुक एग्जाम होना ना होना एक ही बात है और दूसरा जो चाहते है परीक्षाये हों।
ये सभी जानते है कि कक्षाएं नही लगी है और ऑनलाइन के हालात और पढ़ाई के दावों की असलियत सब जानते है।
सरकार भी ,परीक्षाएं कैसे कराई जाएं इस पर ना सोच कर परीक्षाओं को टालने की तरफ ही रुख किये हुए है। यह बात बिल्कुल सच है जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं लेकिन जिन छात्रों के सामने पूरा भविष्य है उन्हें जब डिग्री मिलेगी तब भी वे क्या ये समझ पाएंगे इस समय जो ज्ञान अर्जित कर सकते थे उस ज्ञान का कुछ अंश भी उन्हें मिल पाया या नही?ऐसी स्थिति में हम मांग करते हैं की परीक्षाओं को लेकर सरकार को एक समिति बनानी चाहिए जिसमें छात्र शिक्षक अभिभावक और मेडिकल एक्सपर्ट्स हो ,जो यह मूल्यांकन कर पाये की किस समय और किस तरह से एक सही मूल्यांकन पद्धति के तहत परीक्षाएं कराई जा सकती हैं और अगर परीक्षाएं नहीं कराई जा सकती तो छात्रों के मूल्यांकन की वैज्ञानिक व सभी के लिए समान पद्धति क्या होगी।ओपन बुक एग्जाम पद्धति परीक्षाओं का केवल मजाक बनाती है और छात्रों के दिल दिमाग को परीक्षाओं के प्रति हल्का कर देती है ।हमे आशा है की शिक्षा विभाग उक्त बिंदुओं पर गंभीरता से सोचेगा।