एसटीआर के जंगल में बसाया गांव, नाम रखा एकन टोरिया, 250 से अधिक लोगों के रहने का है अनुमान
सारनी [जनकल्याण मेल]
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गृह जिले के सैकड़ों आदिवासी इन दिनों बैतूल प्रशासन के लिए सिर दर्द बन गए हैं। दरअसल ढाई माह से एसटीआर के जंगल में सैकड़ों आदिवासियों ने डेरा डाल रखा है, जो अब इस घने जंगल से जाने को तैयार नहीं है। समझाइश और वन विभाग के नोटिस का भी इन पर अब तक कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। जानकारी के अनुसार 6 जनवरी से करीब 250 की संख्या में महिला, पुरुष यहां लगभग 500 मीटर जंगल में अस्थायी झोपड़े बनाकर रह रहे हैं। इसकी जानकारी लगने पर सतपुडा टाइगर रिजर्व, पुलिस प्रशासन, राजस्व और वन विभाग द्वारा समझाइश भी दी गई पर आदिवासी मानने को तैयार नहीं है। अब तक कई दौर की समझाइश लगभग सभी विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा दी पर इसका कोई असर नहीं हुआ। इसकी जानकारी बैतूल प्रशासन के आलाअफसरों को है। बीते दिनों कलेक्टर अमनबीर सिंह ने चर्चा में कहा था। इस मामले की जानकारी मुझे है।
देव के नाम से रखा गांव का नाम -
प्राप्त जानकारी के अनुसार एसटीआर के जंगल में छिंदवाड़ा जिले के जामुंपानी, जामुन कांगड़ा, सज्जारी, हर्रा पट्टा और कोल बर्री गांव के लोगों ने कब्जा किया है। यह जंगल बेहद घना है। यहां जंगली जानवर आसानी से नजर आ जाते हैं। इसलिए यहां के वर्षों पुराने निशान गांव को एसटीआर द्वारा विस्थापित कर दिया गया। ऐसे में यहां अवैध रूप से कब्जा कर रहना चिंता का विषय है। यह भी खबर है कि सपने में यहां के लोगों को देव दिखे थे। इसलिए यहीं बस गए और गांव का नाम देव के नाम के रूप में एकन टोरिया रख लिया। यहां पूरे साल भरपूर पानी रहता है।
मदद की दरकार का लगाया आरोप -
छिंदवाड़ा जिले से जंगल के रास्ते बैतूल के रामपुर-भटोड़ी के घने जंगल में पहुँचे आदिवासियों द्वारा समझाइश के दौरान पुलिस को बताया कि हमें हमारे जिला प्रशासन द्वारा वह मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई, जो आवश्यक है। प्रशासन से हमें मदद मिलती तो हम इस जंगल मे आकर नहीं रहते। फिलहाल बैतूल प्रशासन द्वारा सभी पहलुओं की जांच व विचार, विमर्श कर जंगल को क़ब्ज़ा मुक्त करने की योजना है। दरअसल इस घने जंगल मे लोगों के रहने का सीधा असर जानवरों पर पड़ेगा। इससे जानवर हिंसक होंगे। ऐसे में यहां इंसानों का रहना ठीक नहीं है।