सागर [जनकल्याण मेल]
पं. दीनदयाल उपाध्याय, शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय सागर में शिक्षा, व्यवस्था और मानव जीवन के आयाम विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. मार्कन्डेय राय, कुलाधिपति ग्लोबल ओपन विश्वविद्यालय नागालेण्ड, अध्यक्ष डा. वीरेन्द्र कुमार गोस्वामी पूर्व कुलपति एवं बिजीटिग साईटिस्ट संयुक्त राष्ट्र संघ (यूनीडो) और नासा (यूएस) रहे।।
कार्यक्रम के स्वागत वक्तव्य में डा. जी. एस. रोहित प्राचार्य ने कहा कि हमें उस शिक्षा की जरूरत है जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण होने के साथ मनोबल में वृद्धि हो। वेबीनार के मुख्य अतिथि डा. मार्कन्डेय राय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं भारतीय जीवन दर्शन के विषय में कहा कि परिवार ही विद्यार्थी की प्रथम पाठशाला होती है और वह टूट रही है। जिसके कारण हमारी संस्कृति को जानने में रुचि समाप्त हो रही है। 50 देशों को कोविड वेक्सीन देना हमारी भारतीय संस्कृति की परम्परा सर्वजनहिताय को चरितार्थ करती है। अध्यक्ष डा. वीरेन्द्र कुमार गोस्वामी ने शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबंधन व्यवस्था पर कहा कि सामान्य शिक्षक विद्यार्थियों को पढ़ाता है, अच्छा शिक्षक व्याख्या करता है, कुशल शिक्षक करके दिखाता है तथा महान शिक्षक प्रेरणा देता है। दूसरों को ज्ञान देने के लिए सबसे पहले हमें ज्ञान प्राप्त करना होगा। मानव का सफल जीवन सीखने से प्रांरभ होता है तथा सम्पूर्ण जीवन सीखता ही रहता है। विशिष्ट वक्ता डा. जितेन्द्र कुमार लोढा सह-प्राध्यापक शिक्षा महाविद्यालय, कालाडेरा, जयपुर ने शिक्षा और व्यवस्था का अन्योन्याश्रित संबंध पर कहा कि शिक्षा व्यवस्था मानव जीवन के हर पहलू से जुड़ी होना चाहिए, विशेष व श्रेष्ठ शिक्षा पाने के लिए व्यवस्था में सुधार निरंतर होना चाहिए। व्यवस्था को शिक्षा के साथ तथा व्यवस्था को शिक्षा के साथ ही चलना होगा तभी सार्थक परिणाम आएंगे उन्होंने नई शिक्षा नीति के विविध आयामों को स्पष्ट करते हुए कहा कि इस नीति में व्यापक सुधार की संभावनाएं है। डा. सुरेन्द्र पाठक, प्रोफेसर, गांधी विद्यापीठ, अहमदाबाद ने कहा कि मानव के जीने के विविध आयामों अनुभव, विचार, व्यवहार, व्यवसाय की शिक्षा होनी चाहिए नई शिक्षा नीति के विज़न में इसके स्पष्ट संकेत है तभी शिक्षा का प्रयोजन पूरा होता है शिक्षा में मानव लक्ष्य -समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व पहचाने का कौशल विद्यार्थी में विकसित होना चाहिए। शिक्षा से मानव स्वयं में विश्वास, श्रेष्ठता का सम्मान, प्रतिभा व व्यक्तित्व में संतुलन तथा व्यवहार में सामाजिक और व्यवसाय में स्वावलंबी सके ऐसी शिक्षा वस्तु को विकसित करना चाहिए। उन्होंने कहा की शिक्षा वस्तु समुदाय के लिए नहीं होती वह सार्वभौमिक होती है और सर्वमानव के लिए हिती है, शिक्षा यह सम्पूर्ण मानव जाति के लिए रहती है।
डा. गगनदीप शर्मा प्राध्यापक गुरू गोविन्द्र सिंह इद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय नई-दिल्ली ने वैश्विक पर्यावरणीय संकट पर कहा कि आज मानव जाति का अस्तित्व ही संकट में है हमें व्यापक शैक्षिक समाधान की संभावनाएं पर विचार करना होगा कहा उन्होंने कहा कि जीवन की मूल समस्या यह कि हम शहरों पर आश्रित हो गये है क्योंकि कृषि लाभ का व्यवसाय नहीं रहा है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में पलायन हुआ है, जिससे ग्रामीण शहरी पर्यावरण असंतुलित हुआ। विषय प्रवेश एवं कार्यक्रम का संचालन करते हुये डा. अमर कुमार जैन ने कहा कि सूचना शिक्षा नहीं होती है हममें जीवन निर्माण, मानवीयता तथा चरित्र निर्माण करने वाले विचार होना चाहिए। ऐसे विचारों को जिस व्यक्ति ने आत्मसात किये हो वह उस व्यक्ति ही असल में ज्यादा शिक्षित है उसकी तुलना में जिसने पूरा पुस्तकालय याद कर रखा हो। वेबीनार में अतिथि परिचय एवं आभार डा. इमराना सिद्दीकी ने माना।