किसानों के खेतों में पानी देने के समय कभी बिजली की दिक्कत तो कभी पानी की किल्लत



किसानों की सुध लेने तैयार नहीं दिख रहा सिंचाई विभाग

सांची [जनकल्याण मेल] इन दिनों किसानों को अपनी फसलों में पानी देने की दो दो पड़ रही है तब किसानों को कभी पानी देने में बिजली की समस्या से जूझना पड़ता है तो कहीं सिंचाई विभाग की लापरवाही का खामियाजा भुगतना पड़ता है परन्तु किसानों की बड़ी बड़ी घोषणा करने वाली सरकारें भी चुप्पी साध चुकी हैं ।

जानकारी के अनुसार इन दिनों किसानों की फसल खेतों में तैयार होने की कगार पर पहुंच चुकी है किसान रात-दिन अपनी सालभर की मेहनत को हासिल करने की जुगत में जुटे हुए हैं अपनी जान जोखिम में डालकर किसान अपनी फसल उगाही के लिए मशक्कत कर रहा है इस फसल पैदा करने के लिए उसे बिजली की आवश्यकता होती है जिसके लिए उसे बिजली कंपनियों के आगे कनेक्शन लेने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है साथ ही बिजली कंपनियों के मनमाने दामों को चुकाना पड़ता है तथा बिजली के मनमाने बिलों को भरने के लिए दो-चार होना पड़ता है वहीं सिंचाई विभाग से पानी लेने के बदले फसल आते ही सिंचाई विभाग का अमला किसानों से वसूली में जुट जाता है तब किसानों को भुगतान करने पर मजबूर होना पड़ता है परन्तु जब बिजली देने की बारी आती है तब बिजली समय पर मुहैया नहीं हो पाती तब बिजली कंपनियों की मनुहार करना पड़ती है इसी प्रकार सिंचाई विभाग का भी बदहाल रवैया किसानों की फसल चोपट करने पर तुला दिखाई देता है हालांकि सिंचाई विभाग खेतों में बोनी के पहले ही अपनी नहरों की सफाई के नाम पर लाखों रुपए खर्च करना कागजों पर दर्शा देता जबकि धरातल पर नहर मलवे से पुर जाती है तथा फ़सल में पानी देने के समय नहरों में पानी न छोड़ना कहीं न कहीं किसानों की परेशानी का सबब बन जाता है यही हाल इन दिनों गुलगांव के आसपास मुख्य नहर का बना हुआ है जिसमें नाममात्र के लिए पानी देकर सिंचाई विभाग इतिश्री कर चुप्पी साध लेता है न तो इस समस्या की खबर नहरों पर ड्यूटी पर तैनात चोकीदार ही हल कर पाते हैं न ही टाइम कीपरों को ही फुर्सत मिल पाती है हद तो तब हो जाती है जब नहरों की सुध लेने उपयंत्री ही पहुंच पाते हैं न ही अनुविभागीय अधिकारी ही सुध लेने की जहमत उठा पाते हैं बताया जाता है किसानों को पानी देने के दौरान उपयंत्री अपने घरों में बैठे रहते हैं तो अनुविभागीय अधिकारी भोपाल से क ई क ई दिनों अपने कार्यालय नहीं पहुंच पाते जिससे समस्या बताई जा सके यहां वहां किसानों को भटकने पर मजबूर होना पड़ता है जिसका खामियाजा किसानों को अपनी सालभर की मेहनत खोने का भय बना रहता है परन्तु सूचना देने के बाद भी कोई सिंचाई विभाग का अधिकारी सुध लेने की जहमत नहीं उठा पाता । एक तरफ किसानों के हितों की बातें सरकार के साथ प्रशासन भी करता दिखाई दे जाता है परन्तु सरकारों की घोषणा भी मात्र घोषणा बनकर रह जाती है सिंचाई विभाग लापरवाह बन चुका है ।किसानों की फसल सूखने की कगार पर पहुंच चुकी है । किसानों को अपनी फसल बर्बाद होने का भय सता रहा है ।