विश्व कल्याण के लिऐ चलाई जा रही मिशन सुरक्षा चक्र की मुहिम


अशोकनगर:(जनकल्याण मेल)। आने बाले जोखिमों से बचने के लिए जैन समाज के द्वारा अनूठी पहल प्रारम्भ की गई है। देश भर में मिशन सुरक्षा चक्र अभियान चलाया जा रहा है। मिशन सुरक्षा चक्र में श्वेताम्बर जैन श्रावक क्रमानुसार आयंबिल तप करेंगे। श्वेताम्बर जैन परम्परा के आचार्यों के द्वारा इस मुहिम की सराहना की जा रही है। मिशन सुरक्षा चक्र में शहर दर शहर आयंबिल करने वाले तपस्वियों की श्रंखला तैयार की जा रही है। जैन श्रद्धालुओं का मत है कि आयंबिल तप करने से आने वाले संकटों में कमी आऐगी। इस मिशन में एक साल तक आयंबिल तप किया जाऐगा इसकी शुरुआत 21 अक्टूबर से हो गई है। मिशन सुरक्षा चक्र का समापन 20 अक्टूबर 2021 को होगा। इस बीच तपस्वियों की श्रृंखला तैयार कर अधिक से अधिक लोगों को इस मिशन से जोड़ा जाऐगा। जैन आचार्यों के अनुसार एकत्रित जानकारी एवं शोध के आधार पर पता चला है कि दिसम्बर-2020 से मार्च -2021 तक का समय बड़ी विपदाओं से भरा है। आने वाले भयानक आक्रमणों से धर्मप्रेमी सज्जनों की सुरक्षा करने हेतु यह सुरक्षा चक्र जरूरी है ।


मिशन सुरक्षा चक्र के तीन संकल्प-


आयंबिल तप के साथ आराधकों को संकल्पों का उच्चरण करना है। प्रथम संकल्प है दुष्टों (दुर्जनों) का बल टूटे, सज्जनों का बल बढ़े। दूसरा संकल्प राष्ट्रद्रोहियों का पुण्य कमजोर पड़े, राष्ट्रप्रेमियों का पुण्य विशुद्ध बने तथा तीसरा संकल्प नास्तिकता समर्थक व्यवस्थाएँ ध्वंस हो, आस्तिकता समर्थक व्यवस्थाएँ पुनः स्थापित हो। तपस्या के साथ उक्त प्रार्थना भी करनी है। इसके साथ ही विध्न नाशक एवं विश्वकल्याण हेतु मंत्र जाप करना है। मिशन सुरक्षा चक्र के साथ ही अंहिसा एवं जीव-दया के प्रचार प्रसार पर जोर दिया जाऐगा। 


अशोकनगर, गुना एवं पैंची में अभियान से जुड़ रहे श्रद्धालू-


मिशन सुरक्षा चक्र देश भर में चलाया जा रहा है। श्वेतांबर जैन समाज के श्रावक विनय सुराना ने जानकारी दी की अशोकनगर गुना एवं पैंची समाज में भी श्रद्धालुओं को इस मिशन से जोड़ा जा रहा है। व्हाटसअप ग्रुप के माध्यम से तपस्वियों की सूची तैयार की गई है। जिस तपस्वी को महीने की जिस तारीख में आयंबिल करना है वह उस तारीख के व्हाटसउप ग्रुप में लिंक के माध्यम से शामिल हो सकता है। मिशन सुरक्षा चक्र की बेबसाइट भी बनाई गई है जहां से तपस्वी अपना पंजीयन करवा सकते है। तपस्वियों की श्रृंखला इस प्रकार से बनाई गई है कि तपस्या का क्रम निरन्तर चल सके। 


कैसे करते है आयंबिल की तपस्या-


जैन परम्परा में आयंबिल का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। आयंबिल में रसों का त्याग किया जाता है। इस तपस्या में दूध, गुड़, घी, तेल, शक्कर, सब्जियां, फल, मिर्च-मसालों का त्याग रहता है। दिन में ही एक समय उबला पानी, उबली दाल, और उबले मूंग चावल आदि का सेवन किया जा सकता है। सूर्योदय के पूर्व एवं पश्चात कुछ भी ग्रहण करने का निषेध रहता है। 


द्वारिका नगरी से आयंबिल का कनेक्शन-


जैन शास्त्रों के अनुसार यह वही सुरक्षा चक्र है जिसके द्वारा नेमीनाथ भगवान ने द्वारिका नगरी को सुरक्षित किया था। कृष्ण भगवान के शासन में यादव कुल की रक्षा के लिऐ आयंबिल की लड़ी चलाई गई थी जो 12 वर्षों तक चलाई गई थी।  जैन कथाओं के अनुसार सती मैना सुन्दरी एवं श्रीपाल का कल्याण भी आयंबिल तप के कारण ही हुआ था।