सुरेश बाबू पाठक
विदिशा [जनकल्याण मेल]
वर्तमान के परिदृश्यों को ध्यान में रखकर हम सब इस तथ्य को नहीं नकार सकते कि समूचा विश्व आर्थिक महामंदी के दौर से गुजर रहा है, आर्थिक दृष्टि कोण की संपन्नता के चलते अपनी धाक जमाने बाला अमेरिका भी महामंदी की मार को झेल रहा है, कमोवेश चीन और यूरोप के विकसित राष्ट्रों को भी मंदी से दो चार होना पड रहा है ऐसे समय में विकासशील राष्ट्रों को दिक्कत का सामना करना स्वभाविक है चूंकि भारत भी बहुत तेजी से विकास करने की राह पर चलने बाला विकासशील राष्ट्र है परन्तु वर्तमान में मंदी का साढ़े साती से भारत भी अछूता नहीं रह सका है। हालांकि कोविड-19 ने सम्पूर्ण विश्व को अपनी चपेट में जकड़ रखा है फिर भी जहां कोविड19 से हम सब मुकाबला कर रहे हैं वहीं कहीं न कहीं राजनीतिक अदूरदर्शिता के दुष्परिणामों से भी आर्थिक स्थिति बद्तर हुई है कुछ अर्थ शास्त्री नोटबंदी को भी एक कारण आज भी मानते हैं। सरकारी मशीनरी कुछ भी कहे परन्तु हकीकत से रूबरू देश की जनता को ही होना पड़ता है। भारत में मुख्यत: जो त्योहार मनाये जाते हैं। उनमें दीपावली त्योहार की अपनी अहमियत अलग है चूंकि लक्ष्मी पूजन का पर्व है तो स्वभाविक तौर पर इससे अर्थ जुड़ जाता है अर्थात बिना पैसे के यह पर्व फीका- फीका ही लगेगा। एक तरफ आर्थिक स्थिति से हम सब जूझ रहे थे ऊपर से कोविड महामारी ने लाक डाउन के कारण बुरी तरह आहत कर दिया खास तौर पर मजदूर मध्यम वर्गीय रोज कमाने खाने बालों को। हजारों लोगों को आज भी बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। गरीब ओर गरीब हो गया लाक डाउन के चलते जो अर्थ व्यवस्था चरमरा गई है। उसे संवरने में काफ़ी वक्त लगेगा इसी बीच दीवाली त्योहार की चमक में शायद कम चमकाहट दिखाई पड़े
जो निर्धन गरीबी रेखा से नीचे के लोग हैं उन पर असर सबसे ज्यादा प्रतिलक्षित दिखाई पड़ेगा। सम्भव है कि इस त्योहार में लक्ष्मी पूजन में लक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु जिस सस्ती फुलझड़ी को जलाकर रोशनी करता था वो उस फुलझड़ी को भी अपनी लक्ष्मी पूजन में ना ला सके अपनी विवशता के चलते ।