ऐतिहासिक नगरी की आर्थिक हालत दयनीय । कर्मचारियों को वेतन देने के भी पड़े लाले।


सांची [जनकल्याण मेल] वैसे तो सरकार कोई भी हो बातें बड़ी बड़ी करती आ रही है परन्तु इस ऐतिहासिक नगरी की नगर परिषद इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है ।बंद से बत्तर हुई आर्थिक हालात के चलते जब जब त्योहार आते हैं तब तब यहां कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ जाते हैं जिससे कर्मचारियों में भी रोष दिखाई देने लगता है परन्तु शासन द्वारा दिया जाने वाला अनुदान नाकाफी होता है ।


 जानकारी के अनुसार विश्व ऐतिहासिक नगरी में सुविधा समस्या निदान के साथ ही विश्व ऐतिहासिक नगरी को सौन्दर्य तथा विकास का जिम्मा सम्हालने के लिए नगर परिषद के वर्ष १९९६ '९७ में अस्तित्व में लाया गया था इसके पूर्व विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण इस नगर की जिम्मेदारी सम्हाल रहा था । परन्तु नप आने के बाद कुछ वर्षों बाद से ही इस विख्यात नगर के हालात बिगड़ते चले गए तथा वर्तमान में नगर परिषद बद से बद्तर हालात के दौर से गुजर रही है इस नगर में परिषद का गठन इस ऐतिहासिक नगरी के विकास को दृष्टिगत रखते हुए किया गया था परन्तु नप विकास सोन्दर्यीकरण तथा नागरिकों की सुविधा दरकिनार कर विभिन्न आरोपों में घिरती चली गई ।तब इस नगर परिषद में कार्य करने वाले कर्मचारियों को आर्थिक बदहाली के दौरान महीने भर काम करने के बाद भी वेतन के लाले पड़े हुए हैं जब-जब कोई भी त्योहार आते हैं तब-तब कर्मचारियों के सामने वेतन की समस्या खड़ी होने से त्योहार कर्मचारियों को घर में बैठकर भूखे प्यासे गुजारने पर मजबूर होना पड़ता है हमेशा से यह परिषद अधिकारियों की निरंकुश कार्य प्रणाली की भेंट चढ़ती रही है वर्तमान में इस नप निर्वाचित परिषद विहीन लगभग ढाई वर्ष से अधिकारियों के बल पर चल रही है हालांकि इस परिषद को चलाने के पीछे कुछ राजनीतिक लोगों के नाम की सुगबुगाहट भी चल रही है तथा बताया जाता है कि जो राजनीतिक लोग नप को पर्दे के पीछे से चला रहे हैं वह स्वयं भी अधिकारियों की मिली भगत का लाभ उठाने में पीछे नहीं दिखाई दे रहे हैं बताया तो यहां तक जाता है कि लाखों रुपए के भुगतान विभिन्न सामग्रियों की खरीद फरोख्त में किये जा रहे हैं परन्तु कर्मचारियों को वेतन देने के नाम पर बदहाली की कहानी शुरू हो जाती है । इस नप में लगभग ३५ स्थाई कर्मचारी कार्यरत हैं तथा लगभग ५३ कर्मचारी दैनिक वेतनभोगी के रूप में सेवा दे रहे हैं कुल मिलाकर लगभग ८८ कर्मचारियों की लंबी फौज मात्र ८ हजार की जनसंख्या पर चल रही है बताया जाता है इनमें कुछ कर्मचारी ऐसे भी हैं जो महीनों गायब रहने के उपरांत महीने का वेतन पा लेते हैं हद तो तब हो जाती है जब ३५ स्थाई कर्मचारी होते हुए भी कार्यालय की प्रमुख शाखा नल-जल तथा स्टोर जैसी शाखाओं को दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के हवाले कर दिया गया है जिससे मनमर्जी हो सके । यहां तक कि इस बदहाली के दौर से गुजरने वाली नप के एक कर्मचारी को रायसेन तथा एक को टप्पा तहसील सांची में पदस्थ किया गया है जिनका वेतन का भार भी नप को ही वहन करना पड़ता है जहां तक हो कर्मचारियों की बात हो तो इस नप की विभिन्न शाखाओं में मात्र ६ कम्प्यूटर ही चलते हैं तथा इन कम्प्यूटरो को चलाने के लिए ९ आपरेटर पदस्थ किए गए हैं साथ ही इस परिषद में ६ वाहनों के लिए दस चालक पदस्थ किए गए हैं इतना ही नहीं इस ८ हजार की आबादी वाले नप कार्यालय में लगभग १७ भृत्य है जबकि इतने भृत्य जिला कलेक्टर कार्यालय में भी नहीं होंगे । जब कि नप में लेखापाल का होना आवश्यक रहता है लेखापाल के न होने से कार्यालय के ही एक लिपिक को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है ।इस नगर परिषद को आय के कहीं से कोई स्त्रोत न होने से इसका दारोमदार शासन द्वारा आवंटित चुंगी छतिपूर्ति के रूप में आवंटित होने वाली राशि पर ही निर्भर रहना पड़ता है पूर्व में शासन द्वारा ९,६० लाख रुपए आवंटित किया जाता था परन्तु कुछ समय से प्रदेश भर के नगरीय निकाय में इस राशि में शासन द्वारा कटोती कर दी गई थी तब से छतिपूर्ति के रूप में वर्तमान में ६लाख ३६ हजार रुपए ही आवंटित किए जातें हैं तथा शासन ने चुंगी छतिपूर्ति से ३,२५ हजार की कमी कर दी जबकि यहां तैनात कर्मचारियों को वेतन के रूप में विभिन्न कर काटने के उपरांत लगभग १५-१६ लाख का प्रतिमाह भुगतान करना होता है हर माह ही भुगतान की समस्या खड़ी हो जाती है तथा महीने भर काम करने के बाद भी वेतन के लाले पड़े रहते हैं इसके पीछे यह कारण भी बताया जाता है कि विक्षेविप्रा, के कार्यकाल में स्थापित किए गए पदों को समाप्त नहीं किया जाना भी है जबकि लगभग २४-२५ वर्ष का लंबा समय गुजर गया क ई परिषद आई तथा चली गई क ई सीएमओ आये एवं चले गए परन्तु साडा के समय में स्थापित पदों को समाप्त नहीं करवाया जा सका जिससे इस छोटी सी नप का संचालन सुचारू बन सके ।यह नगर परिषद हमेशा से ही गड़बड़ियों की भेंट चढ़ती रही है इस छोटी सी नप में एक सीएमओ लगभग एक करोड़ का चूना लगा कर स्वर्गवासी हो गए जब कि एक सीएमओ भारत सरकार के स्वच्छता मिशन के अंतर्गत शासन की आवंटित राशि लगभग ५० लाख डकार गए इस गड़बड़ी में आरोपी भी साबित होने के बाद भी दो वर्ष से अधिक का समय गुजर गया परन्तु कार्यवाही नहीं हो सकी तथा वह आज भी अन्य नगर परिषद में सीएमओ के पद पर पदस्थ हैं इतना ही नहीं इस गड़बड़ झाले में तीन कर्मचारी भी शामिल बताए जाते हैं परन्तु कोई कार्रवाई न होना कहीं न कहीं शासन प्रशासन में बैठे लोगों की मिली भगत को भी संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर देते हैं । बहरहाल जो भी हो जब जब कोई बड़े त्योहार आते हैं तब तब कर्मचारियों के सामने वेतन की गंभीर समस्या आ खड़ी होती है तब कर्मचारियों को त्योहार मनाना मुश्किल हो जाता है विगत वर्ष भी दीपावली पर वेतन के अभाव में कर्मचारियों को अंधेरे में ही रहना पड़ा था तब या तो नप में साडा के समय स्थापित पदों को समाप्त करना होगा साथ ही शासन को छतिपूर्ति के रूप में आवंटित राशि में बृद्धि किया जाना हौगी साथ ही इस ऐतिहासिक नगरी की नप में चलने वाले गडबडझालै पर अंकुश लगाना होगा तभी परिषद को पटरी पर लाया जा सकेगा ।