तहकीकात- करे कोई-भरे कोई, यह रीत तो ठीक नहीं...? हाईप्रोफाइल जुआ पकडऩे के मामले में अधिकारियों की जल्दबाजी पर उठे सवाल
टीकमगढ़ [जनकल्याण मेल] हाईप्रोफाइल लोगों का जुआ पकडऩा कोतवाली के एक एसआई के लिये मुश्किलें लेकर आ गया। यहां मजे की बात तो यह है कि कर्ता कोई है और भर्ता कोई। बिना जांच पड़ताल और आनन-फानन में एसआई संदीप सोनी को लाइन अटैच किये जाने और शातिर आरोपियों द्वारा गड़ी गई कहानी पर आसानी से भरोसा किये जाने से लोगों के बीच पुलिस अधिकारियों की छवि पर असर देखा जाने लगा है। हालांकि पुलिस अधीक्षक प्रशांत खरे ने मामले की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करने और निर्दोष को अभयदान देने का भरोसा दिलाया है। अब देखना है कि जुआ की कार्रवाई और इस मामले में सत्य का पता लगाने में पुलिस कहां तक कामयाब होती है। सूत्रों की मानें तो एसआई संदीप सोनी के पहले इस मामले में कोतवाली के ही नगर निरीक्षक और अन्य अधिकारी लाखों के इस जुआ के बारे में भली भांति जानते थे, जिन्होंने सारी कार्रवाई को अंजाम देने की जिम्मेदारी एसआई संदीप सोनी को सौंपी थी, हालांकि वह अड्डे का दरवाजा तक नहीं खुलवा सके और टीआई आरपी चौधरी की एक आवाज पर सारे आरोपियों ने दरवाजा खोल दिया और पुलिस गिरफ्त में आ गये, जैसे वह टीआई श्री चौधरी के आने का इंतजार कर रहे थे, या उन्हें किसी असरदार के द्वारा फोन करके बुलाया गया था। यह सारा मामला जांच का विषय है। 15 अगस्त को पुलिस द्वारा पकड़ा गया जुआ और उसके दौरान की गई कार्रवाई के बाद से अनेक सवाल उठने लगे हैं। इस मामले में की गई तहकीकात के दौरान बड़े ही रोचक और चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। एक तो इस मामले में मुखबिर किसका का था, और इस मामले में क्या योजना थी, यह जानना भी अधिकारियों के लिये जरूरी है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि किसी आरोपी ने ही बड़ी रकम को देखकर यह योजना बना डाली। इसकी सूचना मिलने के बाद नगर निरीक्षक द्वारा सर्च वारंट बनवाकर यह जिम्मेदारी एसआई संदीप सोनी और पुलिस को सौंपी गई, जो करीब 6.30 बजे शाम नूतन विहार कालोनी पर हो रहे जुआ के अड्डे पर पहुंचे, जहां आरोपियों ने तब तक दरवाजा नहीं खोला जब तक कि टीआई आरपी चौधरी मौके पर नहीं पहुंचे। इस दौरान एक बात यह भी सामने आई है कि दो किलोमीटर की दूरी तय करने में नगर निरीक्षक को दो घंटे का समय लगा, जबकि वह यहां 15 मिनिट में ही पहुंच सकते थे, उन्हें इतनी देर क्यों लगी, इसके पीछे कारण क्या रहा, यह भी पुलिस के लिये जानना जरूरी है। पता चला है कि जैसे ही टीआई श्री चौधरी मौके पर पहुंचे , तत्काल आरोपियों ने दरवाजा खोल दिया। वहां न तो आरोपियों की तलाशी ली गई और न ही किसी तरह की छानबीन की गई। तत्काल उन्हें लेकर टीआई कोतवाली आ गये। जहां केवल पुलिस के हाथ लगभग 20 हजार रूपये की राशि लगी। यहां भी कुछ आरोपी साहब के साथ चर्चा में मशगूल रहे। जारी वीडियो भी मामले की वास्तविकता को जानने के लिये काफी हैं। कोतवाली और मौके के वीडियो में देखा जा सकता है कि आरोपी उन एक घंटे में लुकाछुपी का खेल खेलते रहे। उनके बदलते व्यानों ने की इतना तो साबित कर दिया की इस मामले में कोई बड़ा झोल है। जब आरोपियों को टीआई श्री चौधरी द्वारा पकड़ा गया और उनके द्वारा ही लाया गया। इतना ही नहीं यदि पुलिस ने कोतवाली में ही लाखों रूपये की राशि लूट ली, तो इस मामले में थाना प्रभारी दोषी क्यों नहीं हैं। यहां गौर करने लायक बात यह भी है कि यह सारा मामला पुलिस अधीक्षक के संज्ञान में था, उनके द्वारा टीआई श्री चौधरी से बीच में जानकारी भी ली गई, तो फिर एक एसआई द्वारा इतना बड़ी घटना को अंजाम कैसे दे दिया गया। बीस लाख की बड़ी रकम एक एसआई लूट ले, वो भी कोतवाली में...यह बात आम लोगों की समझ से भी बाहर है। इस संबन्ध में थाना प्रभारी को किसी असरदार नेता का फोन आने और आरोपियों के साथ गलत व्यवहार न करने की बात भी सामने आ रही है। इस बात में सच्चाई कितनी है, यह काल डिटेल निकालकर आसानी से समझ में आ सकती है। हाईप्रोफाईल लोगों में अनेक शातिर आरोपी भी शामिल हैं। जिनकी कुंडली खंगालने की जरूरत है। पुलिस अधिकारियों ने यदि थोड़ी सी सख्ती दिखाई होती तो सारा मामला उसी समय स्पष्ट हो सकता था। लेकिन वहां तो नाम के आगे अधिकारी ही जी लगाते देखे जा रहे थे। इतना ही नहीं इज्जत से साहब के साथ बातचीत करते नजर आ रहे थे। अब इस मामले की सच्चाई जानने के लिये कोई टेस्ट तो होगा नहीं। यह कोई पहला जुआ का मामला नहीं है, जब पुलिस कार्रवाई को लेकर भद्द पिटी है। इसके पहले एक नेता के यहां की गई छापामारी के दौरान भी पुलिस ने लगभग घुटने टेक दिये थे, जो लोगों के बीच चर्चा का विषय बना रहा।
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सच्चाई सामने आनी ही चाहिये....?
जुआ के अड्डे पर की गई पुलिस कार्रवाई और अधिकारियों द्वारा की एसआई संदीप सोनी के खिलाफ कार्रवाई की सच्चाई सामने आना ही चाहिये। अपराधियों के इस कार्रवाई के बाद जहां हौंसले बुलंद हो गये हैं, वहीं पुलिस के हौंसले पस्त हो गये हैं। अब नगर में चल रहे जुआ के अड्डों पर तो दूर, पुलिस कर्मचारी अपराधियों का पकडऩे का भी साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। दबे गले से पुलिस कर्मचारी भी यह कहते नजर आने लगे हैं कि बच्चे पालने दो, हो गई कार्रवाई। इस तरह के शब्दों से स्पष्ट है कि इस कार्रवाई के बाद कोतवाली के पुलिस कर्मचारी पूरी तरह से मायूस हैं। जहां अपराधियों की तूती बोलने लगे, वहां न्याय की उम्मीद कम ही रह जाती है। अब देखना है कि पुलिस विभाग के आला अधिकारी इस मामले में कहां तक सुलझा पाते हैं।
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धमकी हुई सही साबित या एक इत्तेफाक है....
जुआ पकडऩे के बाद एक शातिर आरोपी ने एसआई संदीप सोनी को लाइन अटैच कराने की धमकी दी, जिसका जिक्र उन्होंने रोजनामचा में भी किया। इसके बाद बड़े ही नाटकीय ढंग से कुछ डिजानर पत्रकारों की मदद से यह आरोपी पुलिस पर दबाव बनाने में कामयाब हो गये। सागर से आए आईजी ने भी आनन फानन में एसआई को लाइन अटैच करने के निर्देश दे डाले और आरोपियों के हौसले इसके बाद से बुलंद हो गये। मामले में पकड़े गये दस आरोपियों और उनके साथ रहे डिजायन पत्रकारों की चाल जहां कामयाब हो गई, वहीं पुलिस कर्मचारियों का मनोबल टूटता नजर आने लगा है। येसे में सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी सारे मामले में दूध का दूध और पानी का पानी कर पाने में कामयाब हो सकेंगे। जैसा की कहा जा रहा है।
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गये 15, फिर गाज केवल एसआई क्यों...?
जुआ के फड़ पर छापा मारने गये नगर निरीक्षक आरपी चौधरी समेत अन्य लगभग 15 लोगों में केवल एक एसआई पर कार्रवाई होना अजीब ओ गरीब लग रहा है। यहां बता दें कि मकान का दरवाजा तब खोला आरोपियों ने जब टीआई श्री चौधरी मौके पर पहुंचे। मकान मालिक जो पुलिस के भय से बका लिये पकड़ा गया, उसके बारे में पुलिस को ही पहले पता नहीं था। वह बका लिये जब दिखा तो उसे पकड़ लिया गया। हालांकि यह बाद में पता चला कि वह मानसिक रूप से विक्षिप्त भी है, जिसका इलाज चल रहा है। अब पहले तो यह कहा गया कि जमीन का सौदा हो रहा था, इसके बाद यहां मसाला खेले जाने की कहानी गड़ी गई, जबकि यहां जुआ पहले भी पकड़ा जा चुका है। यहां एसआई श्री सोनी के साथ दो महिला आरक्षक और तीन एनआरएस व सात पुलिस आरक्षक गये थे, इसके बाद जब टीआई पहुंचे तो उनके साथ भी एक आरक्षक और एक अन्य व्यक्ति मौजूद था। मामला बीस लाख की लूट और फर्जी आम्र्स एक्ट का मामला दर्ज किये जाने का है। अब येसे में जरूरी यह हो जाता है कि आम लोगों को यह सच पता चलना चाहिये कि सही कौन बोल रहा है। पुलिस या आरोपी...?