चम्बल में आतंक के पर्याय रहे आत्मसमर्पित दस्यु मोहर सिंह का निधन

आत्मसमर्पण के बाद आए समाज सेवा और राजनीत के क्षेत्र में ।


डॉ तरुण शर्मा
भिंड( जनकल्याण मेल)
  पूर्व दस्यु सम्राट मोहर सिंह गुर्जर का निधन, बीमारी के चलते कल सुबह 9 बजे हो गया,92 साल के थे मोहर सिंह दद्दा 60 और सतर के दशक में था, 2 लाख का ईनाम घ, पुलिस रिकॉर्ड में थे 315 अपराध दर्ज, 85 हत्याओ के थे आरोपी, 1958 में पहली बार दर्ज हुआ था आपराधिक मामला, जमीनी विवाद को लेकर बने थे डकैत । सभी मामलों में हो गए थे बरी।
डकैतों के आतंक की कहानियों के लिए कुख्यात चम्बल घाटी में अपने आतंक की अनगिनत कहानियां और किंवदंतियां लिखने वाले आत्मसमर्पित डकैत मोहर सिंह साठ से लेकर सत्तर के दशक तक चम्बल में दो सबसे बड़े डाकू गिरोह थे मोहर सिंह और माधो सिंह । मोहर सिंह ने 1972 में अपने गिरोह के साथ पगारा बांध परजयप्रकाश नारायण से भेंट की और फिर 14 अप्रैल 1972 को गांधी सेवा आश्रम जौरा जिला मुरेना में अपने साथियों सहित गांधी जी की तस्वीर के सामने हथियार रखकर आत्मसमर्पण कर दिया । उस समय मोहर सिंह पर एमपी,यूपी,राजस्थान आदि राज्यो की पुलिस ने दो लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था।  150 लोगो की गैंग संचालित करते थे ।मोहर सिंह के खिलाफ देश के विभिन्न थानों में  तीन सौ से अधिक    हत्या,लूट, आदिआपराधिक मामले दर्ज थे लेकिन बकौल मोहर सिंह ये गिनती बहुत कम थी ।
आत्मसमर्पण के बाद मोहर सिंह ने भिण्ड जिले के मेहगांव कस्बे को अपना घर बनाया और वही रहने लगे। वे दाड़ी रखते थे ।इसलिए वे वहां दाढ़ी के नाम से ही विख्यात थे। वे हँसमुख और मिलनसार थे। इसलिए हर उम्र के लोगों में उनकी खासी लोकप्रियता थी ।  उन्होंने कई गरीब निर्धन कन्याओं का विवाह कराया। उनकी लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि वे एक बार नगर पालिका मेहगांव के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े और निर्दलीय ही जीत गए । उंन्होने इस दौरान विकास के काम भी कराए । लोगो ने उनसे फिर चुनाव लड़ने को भी कहा तो उन्होंने मना कर दिया ।
कैसे बने डकैत
अपने समय के सबसे खूंखार डकैत मोहर सिंह ग्राम जटेपूरा गांव में दबंगो ने उनकी जमीन छुड़ा ली और पुलिस से मिलीभगत करके बन्द भी करा दिया । इसके बाद मोहर सिंह डकैत हो गया और फिर उसने अपने आतंक से पूरे उत्तर भारत को दहलाकर रख दिया। समर्पण के समय इसके गैंग में 37 लोग थे । जब मोहर सिंह गैंग ने समर्पण किया तब उज़के पास सारे ऑटोमेटिक हथियार थे जो पुलिस के पास भी नही थे।
ये हथियार किये थे समर्पित
समर्पण करते समय मोहर सिंह 37 साल का था । वह पूरी तरह निरक्षर था । बकौल उसके-हमने तो स्कूल का मुंह भी नहीं देखा। उसने जब समर्पण किया तो एक एसएलआर,टॉमी गन,303 बोर चार रायफल,ऑटोमेटिक  चार एलएमजी,स्टेनगन ,मार्क 5 रायफल सहित भारी असलाह गांधी जी  के चरणों मे रखा कर कई वर्ष
जेल  काटी और  बाद में अपने ऊपर बनी फ़िल्म में हीरो भी बने
मोहर सिंह और माधो सिंह कहने को तो अलग-अलग गिरोह थे लेकिन दोनों के बीच खूब याराना था । मोहर सिंह द्वारा माधो सिंह का बहुत आदर किया जाता था । दोनों गैंग ने एक साथ आत्मसमर्पण किया और फिर जेल में रहकर मुकद्दमे निपटाने के बाद ही बाहर  आये ।  बाद में चम्बल के डाकू नाम से एक फ़िल्म भी बनी इसमें मोहर सिंह और माधो सिंह दोनों ने अपनी भूमिकाएं भी निभाई ।