श्री नृसिंह मंदिर और दरगाह झींझरयारे पीर का आवश्यक है रसायन संरक्षण


मजीद खां पठान


चंदेरी  - ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल चंदेरी धीरे-धीरे उभरता हुआ एक ऐसा मझौला पर्यटन स्थल है जो एक नहीं कई विशेषताओं के लिए सब दूर जाना पहचाना जाता है । मसलन चंदेरी साड़ियां, हेरिटेज, धार्मिक आध्यात्मिक, प्राकृतिक, जल जंगल एडवेंचर इत्यादि।


इन सब से अलग हटकर हम बात कर रहे हैं चंदेरी के सौंदर्य शिल्प वास्तुकला विधा की। यह एक ऐसा हुनर है जो पत्थर में भी जान डाल देता है इस क्षेत्र में चंदेरी उन सौभाग्यशाली नगरों में से एक है जहां विभिन्न कालखंड में पृथक- पृथक वास्तु शैली एवं मिश्रित वास्तुकला की सौगात से नवाजा गया है । यही वह मिले-जुले कारण है जिनके चलते नगर में वर्षभर पर्यटकों का आना-जाना जारी है देखा यह भी गया है कि देश में स्थित विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों फैशन संस्थान, वास्तु शिल्प संस्थानों के अलावा वास्तुकला क्षेत्र के जिज्ञासुजन का नगर आगमन होता रहता है। उनके द्वारा हस्तकला का नायाब नमूना चंदेरी साड़ी साथ ही नगर की विभिन्न इमारतों के वास्तुशिल्प को समझा परखा जाता है ।


यूं तो जो भी पर्यटक अथवा विद्यार्थी गण आते हैं वह नगर के मुख्य स्मारकों से रूबरू अवश्य ही होते हैं। चंदेरी साड़ी कैसे निर्मित होती है खूब देखते समझते हैं लेकिन जब इमारतों के वास्तु शिल्प कला को समझते हैं तो वह श्री नृसिंह मंदिर दरगाह झींझरयारे पीर अवश्य जाते हैं।


 उक्त दोनों पवित्र स्थल एक ओर जहां धार्मिक आध्यात्मिक भावना से जोड़ते हैं वहीं दूसरी ओर विशेष शिल्प कला के कारण पर्यटकों की आंखों के तारे बन जाते हैं। पत्थर पर की गई बारीक नक्काशी पच्चीकारी जाल बेल बूटे कलात्मक कारीगरी बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देती है । 16 वीं सदी में निर्मित दरगाह एवं 17वीं सदी में निर्मित श्री नृसिंह मंदिर वास्तुकला मान से बेजोड़ स्थापत्य कला का परिचय देने में समर्थ है । मंदिर का अग्रभाग बुंदेला वास्तु कला का नगर में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। वही दरगाह का संपूर्ण भाग पत्थर पर की गई बेजोड़ कारीगरी का अनुपम मिसाल है। 


 म. प्र. शासन पुरातत्व विभाग द्वारा  दिल्ली दरवाजा, ढ़ोलिया दरवाजा, पुरानी कचहरी, शेखों का मकबरा, पचमढ़ी इत्यादि का रसायन संरक्षण कार्य कर उन्हें उनके पुराने स्वरूप में लाने का सफल प्रयास किया गया है ।


 इसी प्रकार बादल महल दरवाजा, जामा मस्जिद आदि स्मारकों का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भारत सरकार) द्वारा सफल रसायन संरक्षण कार्य किया गया है। जिस कारण पत्थर पर की गई बारीक से बारीक कला को देखा समझा जा सकता है।


 ठीक विपरीत इसके दरगाह मंदिर दोनों संरचनाओं पर बरसों से किए जा रहे सफेद चूना के कारण कई परत जमा हो जाने से मूल स्वरूप अत्यधिक प्रभावित हुआ है। संपूर्ण स्मारक मात्र सफेद- सफेद दिखाई देता है असली एवं बारीक वास्तु शिल्प छिप गया है। ऐसा भी नहीं है कि यह जानकारी राज्य पुरातत्व विभाग से छुपी हुई हो सब कुछ जानकारी में है फिर भी रसायन संरक्षण हेतु कोई कदम न उठाना कहीं-न-कहीं चंदेरी पर्यटन के साथ-साथ स्मारक के हितों पर भी विपरीत प्रभाव डालता है।


        स्मरण रहे उक्त दोनों स्मारक मंदिर एवं दरगाह मध्य प्रदेश शासन माफी अंतर्गत संधारित हैं। श्रीनृसिंह मंदिर मध्य प्रदेश शासन द्वारा विधिवत ऐतिहासिक महत्व का घोषित होकर संरक्षित है। श्रीनृसिंह मंदिर क्षेत्र का एकमात्र ऐसा इकलौता मंदिर है जो सैकड़ों बीघा भूमि का स्वत्व स्वामित्यधारी  होकर चंदेरी की अमूल्य धरोहर है। यह एक ऐसा मंदिर है जिसकी वास्तु कला क्षेत्र में किसी अन्य मंदिर स्मारक से मेल मिलाप नहीं करती है यही नहीं मंदिर एवं मंदिर के सामने पूर्व काल से प्रति वर्ष आयोजित होते आ रहे भगवान नरसिंह प्रकटोत्सव धार्मिक कार्यक्रम इत्यादि विरासत चंदेरी की पूंजी का एक महत्वपूर्ण अंश है।


          वही दूसरी ओर दरगाह शासकीय प्रक्रिया अंतर्गत ऐतिहासिक महत्व का स्मारक घोषित एवं संरक्षित होने हेतु प्रतीक्षारत है। बाहर से आने वाले जिज्ञासु अपनी ज्ञान पिपासा को शांत कर सके आ रहे विद्यार्थी वास्तु ज्ञान अर्जित कर सके। अतएव उक्त दोनों धार्मिक आध्यात्मिक स्थलों पर रसायन संरक्षण कार्य किए जाना आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य है। 


         वैसे भी देखा जाए रसायन संरक्षण से फायदे ही फायदे हैं एक तो सालों से जमचुकी धूल मिट्टी की काली परत अथवा किए गए चूना की चढ़ी परत अलग हटकर इमारत पुनः अपने वैभव को प्राप्त करती है दूसरे रसायन संरक्षण से पत्थर को मजबूती मिलती है तीसरे विरासत प्रेमियों को आत्म संतुष्टि मिलती है ।