पराजय के सदमे से उबरे पहले भाजपा : शोभा ओझा


 


कांग्रेस सरकार पूरी तरह मजबूत 
सरकार गिराने की धमकियां देने के बजाय, सकारात्मक 
विपक्ष की भूमिका निभाये भाजपा 


भोपाल ~ भारतीय जनता पार्टी विधानसभा में जनहित के मुद्दों पर सरकार को सहयोग देने या सकारात्मक आलोचना की बजाय प्रदेश में लगातार यह भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस की सरकार स्थिर नहीं है, जबकि वास्तविकता यह है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी कमजोरी को पहचानती है और इसीलिए जब भी सदन में बहुमत सिद्ध करने के लिए मत-विभाजन का मौका आता है, वह सदन से बहिर्गमन कर देती है। भाजपा के नेता प्रतिपक्ष  गोपाल भार्गव, प्रदेशाध्यक्ष , राकेश सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री  शिवराजसिंह चैहान, पूर्वमंत्री नरोत्तम मिश्रा और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित भाजपा में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के जितने भी प्रतियोगी हैं, उनकी खींचतान के कारण सदन में या सदन से बाहर सरकार गिराने की बातें की जाती हैं, लेकिन भाजपा को यह साफ समझ लेना चाहिए की प्रदेश की जनता या कांग्रेस के विधायकगण उनकी इन बातों में आने वाले नहीं हैं और यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि कांग्रेस पार्टी की सरकार पूरी मजबूती से अपना काम कर रही है और अगले 5 वर्षों तक उसे किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है और इन 5 वर्षों में यह कांग्रेस  सरकार मध्य प्रदेश का स्वर्णिम अध्याय लिखने के लिए भी पूरी तरह से वचनबद्ध है, प्रतिबद्ध है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के निर्वाचन में दो मर्तबा कांग्रेस के संख्याबल से पराजित हो चुकी भाजपा, संसदीय पद्धति, प्रक्रिया एवं मध्यप्रदेश विधानसभा की मान्य परंपराओं का खुलेआम उल्लंघन कर, प्रदेश के विकास में बाधक बनने का एक भी मौका नहीं छोड़ रही है। यह हास्यास्पद ही है कि भाजपा एक बार 4 जनवरी 2019 को मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष के निर्वाचन और दूसरी बार 10 जनवरी 2019 को मध्यप्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष के निर्वाचन में पराजित हो चुकी है। ज्ञात हो कि विधानसभा अध्यक्ष के निर्वाचन के दौरान जब डिवीजन हुआ तो भाजपा सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया। जबकि वे सदन में ही थे, लेकिन मतदान में भाग नही लिया, मतलब सीधा है कि बयानबाजी करो और संसदीय पद्धति, प्रक्रिया तथा मान्य परंपराओं का पालन नहीं करो। यहां यह ज्ञात हो कि विधानसभा अध्यक्ष के निर्वाचन में कांग्रेस के प्रत्याशी के पक्ष में 120 मत पड़े थे, जबकि विपक्ष में कोई मत नहीं पड़ा था। यह हास्यास्पद है कि मुंह की खाने के बाद भी भाजपा नेताओं की अनर्गल बयानबाजी और बड़बोलापन अभी भी लगातार जारी है। 


आश्चर्यजनक है कि भाजपा और उसके नेता एक ऐसी जनहितैषी सरकार के विकास से जुड़े फैसलों में अडंगा लगाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसने जनता के हित को ध्यान में रखते हुए इतिहास में पहली बार रविवार को भी सदन चलाने का निर्णय लिया। 
यही नहीं भाजपा की यह आदत है कि वह हर मुद्दे पर झूठ फैलाकर कांगे्रस के विरूद्व दुष्प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ती। इसलिए कल कांगे्रस की वयोवृद्ध नेता और 15 वर्षों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं श्रीमती शीला दीक्षित के निधन के बाद सदन में शोक व्यक्त करने की बात पर भी उन्होंने झूठ बोल कर राजनैतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की, जबकि स्वयं प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री कमलनाथ ने यह स्पष्ट किया कि वे स्वयं श्रीमती शीला दीक्षित के निधन पर कल (21 जुलाई, 2019) ही शोक व्यक्त करना चाहते थे, लेकिन सदन की राय, जिसमें नेता प्रतिपक्ष की सहमति भी शामिल थी, उस पर अध्यक्ष ने यह व्यवस्था दी कि हम आज यानि 22 जुलाई, 2019 को श्रीमती शीला दीक्षित के निधन पर शोक व्यक्त करेंगे।
आवश्र्यजनक है कि ऐसे भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दे पर सभी तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट होने के बावजूद भी भाजपा नेताओं द्वारा सदन और प्रदेश की जनता को बरगलाने से साफ है कि वे अन्यान्य मुद्दों पर सदन का ध्यान बंटाना चाहते हैं, जनहित के मुद्दों पर चर्चा से उनका कोई सरोकार नहीं है। विधानसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में भी संख्या बल के अभाव में पराजित भाजपा बजट सत्र के दौरान कभी भी मत-विभाजन की मांग कर सकती थी, यह उसका संवैधानिक अधिकार था, किंतु उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि भाजपा को पता था कि वह संख्या बल में कांगे्रस से बहुत पीछे है। लिहाजा, वे झूट का सहारा लेकर अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए विधानसभा में उठाये जाने वाले सभी मुद्दों पर जनता को भ्रम की स्थिति में रखने का असफल प्रयास निरंतर कर रहे हैं। 
श्रीमती ओझा ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और भाजपा नेता सदन के बाहर बयानबाजी करते हैं लेकिन जब लोकहित से जुडे़ हुए मुददों पर सदन में चर्चा होती है, या राज्य का बजट पेश होने के बाद विधायकों को सभी विषयों को सदन में रखने का अवसर मिलता है, तब भी सदन की कार्यवाही से भाजपा सदस्य बहिर्गमन कर देते हैं। जबकि समान्यतः बजट सत्र में स्थगन प्रस्ताव नहीं लाया जाता है लेकिन स्थगन प्रस्ताव लाने के लिए शिवराज सिंह चैहान और उनके सदस्यों ने मान्य संसदीय परंपराओं का घोर उल्लंधन किया है।
विपक्ष की भूमिका में बैठी भाजपा का गैर जिम्मेदारना और असंसदीय व्यवहार जनता के सामने है, विपक्ष को जनहित से कोई मतलब नहीं, उन्हें पिछले 15 सालों में अनुशासनहीनता की आदत पड़ चुकी है। उन्होंने बताया कि शिवराज सिंह चैहान और विपक्ष के सदस्यों द्वारा 17 जुलाई 2019 को प्रश्नकाल में जो व्यवधान किया गया और जिसके कारण महत्वपूर्ण प्रश्नकाल बाधित हुआ, उससे कई जनकल्याणकारी विषय विधायकों द्वारा नही उठाये जा सके। इससे प्रदेश की प्रगति, हितों और विकास के संदर्भ में भाजपा और उसके नेताओं की वास्तविक सोच उजागर हो गई है। भाजपा को चाहिए कि वह अपनी पराजय के सदमे से उबरे और इस तथ्य को स्वीकार करे कि अब वह सत्ता से बाहर हो चुकी है और अगले पांच वर्षों तक कमलनाथ जी के नेतृत्व में कांगे्रस की जनहितैषी सरकार मध्यप्रदेश में पूरी मजबूती से कार्य करते हुए प्रदेश की प्रगति और विकास का स्वर्णिम अध्याय लिखेगी।